Tuesday, March 8, 2011

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में वर्तमान संस्कृत–अध्ययन केन्द्र


वैश्विक परिप्रेक्ष्य में वर्तमान संस्कृतअध्ययन केन्द्र
नारायणदत्त मिश्र
ndmishrasaachin@gmail.com
विशिष्टसंस्कृताध्ययनकेन्द्र
जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय
प्राक्कथन:-विश्व की सबसे प्राचीन भाषा के रूप में स्वीकृत संस्कृत का अध्ययन भारत सहित विश्व के किनकिन स्थानों में प्रमुख रूप से होता है तथा उनउन स्थानों में संस्कृत भाषा-अध्ययन को नई दिशा देने के लिये सहयोग में लिये जाने वाले विशिष्ट प्रकार्यात्मक तत्त्वों एवं वहाँ अध्यापन कार्य में संलग्न अध्यापक वर्ग का सामान्य परिचय इस शोधपत्र में प्रस्तुत किया जायेगा
      परिचय:-यह सर्वविदित ही है कि संस्कृत विश्व की प्राचीन भाषा है भाषाओं के वर्गीकरण के सन्दर्भ में संस्कृत को भारोपीय भाषा-परिवार के वर्ग में परिगणित किया जाता है विश्व में बोली जाने वाली सभी भाषाओं में संस्कृत , ग्रीक , लैटिन , मंडारिन आदि भाषाओं को प्राचीन एवं समृद्ध भाषा के तौर पर स्वीकार किया जाता है, पर इन सभी भाषाओं की तुलना में संस्कृत भाषा कई शताब्दियों से चली रही सभ्यता , संस्कृति एवं परम्परओं से सुसज्जित अपनी विशाल वाङ्मयराशि की समुपलब्धता के कारण बेहद समृद्ध एवं प्राचीन मानी जाती है           ऐतिहासिक तत्वान्वेषकों के द्वारा अनेक भुर्जपत्रों , पाण्डुलिपियों एवं ताम्रादि पत्रों तथा अभिलेखों के अन्वेषण कार्यों के बाद आर्यों द्वारा संगृहीत , ऋग्वेद को प्राचीनतम लिखित संग्रह स्वीकृत किया जाना , संस्कृत भाषा की प्राचीनता  , ऐतिहासिकता एवं इस भाषा के बेहद समृद्ध होने जैसे तथ्यों को परिपुष्ट करता है यही नहीं इस भाषा में लिखित तथा संगृहीत अन्य विविध ग्रन्थों की मौजूदगी से सभ्यता-सांस्कृतिकता से जुड़ी अनेक बातों की समुचित जानकारी प्राप्त होती है , जो विश्व-भाषापटल पर संस्कृत भाषा को अपनी विशिष्ट पहचान प्रदान करती है   संस्कृत की विशेषताओं को उल्लिखित करते हुए नासा के अनुसन्धानकर्त्ता रिक ब्रिग्स ने निम्नलिखित वक्तव्य जारी किये थे -
    `Nasa the most  advanced research centre in the world for cutting edge technology has discovered the sanskrit, the world`s oldest spiritual language is the only unambiguous spoken language, a further implication of this discovery is that the age old dichotomy between religion and sciences is an entirely unjustified one.
                                        Posted August 18 , 2006
         5000 वर्षों से पूर्व तक की ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रामाणिक निधियों को सँजो कर रखने वाली संस्कृत भाषा का विकास तथा व्यापक प्रचार-प्रसार भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ , जहाँ इसे शिखर पर ले जाने का कार्य पाणिनी , पतञ्जलि , भास , कालीदास आदि मूर्धन्य विद्वद्जनों ने किया तक्षशिला , काशी , उज्जयिनी , नालन्दा , वल्लभी , विक्रमशिला , काँचीपुरम जैसे संस्कृत भाषा-अध्ययन केन्द्रों की तात्कालीन विद्यमानता इस भाषा की पराकाष्ठा एवं प्रतिष्ठा के स्तर को जानने समझने के लिये पर्याप्त मानी जाती है संस्कृत भाषा की इन्हीं महत्ताओं एवं प्रासंगिकताओं के कारण विश्व में बोली जाने वाली अन्य सभी भाषाओं के मध्य यह आज भी अपना विशेष स्थान रखती है संक्षिप्त रूप से अपनी इन्हीं विशिष्टताओं के कारण संस्कृत भाषा का अध्ययन , अध्यापन केवल हमारे देश में ही अपितु विश्व के अनेक देशों में चलायमान है
                        सर्वप्रथम संक्षेप में भारत में संस्कृतअध्ययन केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों , पठन-सामग्रियों , विद्वद्गुरुजनों तथा विशिष्ट प्रकार्यात्मक गतिविधियों को प्रस्तुत किया जा रहा है
भारत के प्रसिद्ध संस्कृत विश्वविद्यालयों के नाम निम्नलिखित हैं-
1.   राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान , नई दिल्ली
            भारतीय सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा संस्थापित यह मानित विश्वविद्यालय विश्व में एकमात्र बहुपरिसरीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तौर पर जाना जाता है इसके परिसरों में राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान जयपुर , जम्मू , गरली , लखनऊ , इलाहाबाद , भोपाल , पुरी , मुम्बई , शृङ्गेरी तथा गुरुवायूर के नाम परिगणित किये जाते हैं
2. राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ , तिरुपति ( आन्ध्र-प्रदेश )
3. सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय , वाराणसी ( उत्तर-प्रदेश )
4. श्री लालबहादुरशास्त्रिराष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ , नई दिल्ली
5. श्री शङ्कराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय , कालडी ,एर्णाकुलम ( केरल )
6. श्री जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय , पुरी ( उड़ीसा )
7. जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय , जयपुर
8. सोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय , जूनागढ़ ( गुजरात )
9. कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय , नागपुर
10. उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय , हरिद्वार ( उत्तराखण्ड )
11. महर्षि पाणिनि संस्कृत विश्वविद्यालय , उज्जैन ( मध्य-प्रदेश )
12. कामेश्वरसिंह संस्कृत विश्वविद्यालय , दरभङ्गा ( बिहार )
13. श्री वेंकटेश्वर वैदिक विश्वविद्यालय , तिरुपति ( आन्ध्र-प्रदेश )
14.कर्णाटक संस्कृत विश्वविद्यालय , बेंगलुरु  ( निर्माणाधीन )
            इसके साथ-साथ उच्च संस्कृताध्ययन केन्द्र , पुणे विश्वविद्यालय ; विशिष्ट संस्कृताध्ययन केन्द्र , जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय ; उत्कल विश्वविद्यालय का संस्कृत विभाग ;
फ्रेंच संस्थान , पॉण्डिचेरी के संस्कृत भाषा तथा साहित्य का भारतीय विश्लेषण इस विभाग द्वारा तथा प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में संस्कृत विभाग द्वारा एवं भारत में , अन्य पारंपरिक संस्कृत विद्यापीठों एवं गुरुकुलों में संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन , अनुसन्धान आदि कार्य होते हैं
                              इन्हीं विश्वविद्यालयों में इस भाषा के अध्यापनादि कार्यों में रत विद्वद्गणों में; देश-विदेश में प्रख्यात राधावल्लभ त्रिपाठी , हरेराम कृष्ण शतपथी , वी. कुटुम्ब शास्त्री , रामकरण शर्मा , अभिराजराजेन्द्र मिश्र , वाचस्पति उपाध्याय जैसी विद्वद्मण्डली संस्कृत भाषा-संवर्धन के प्रयास में सन्निहित है
       उपर्युक्त परिगणित विश्वविद्यालयों में पूर्व-स्नातक , स्नातक , स्नातकोत्तर स्तर की सभी उपाधियों को  प्रदान करने के साथ-साथ अनुसंधान ,संस्कृत प्रचार-प्रसारार्थ कार्यों से सम्बद्ध प्रमाणपत्र तथा उपाधियाँ प्रदान की जाती हैं ।
                        प्रकार्यात्मक गतिविधियों में प्राचीन भुर्जपत्रों , पाण्डुलिपियों में सन्निहित अनेक दुर्लभ ग्रन्थों , शास्त्रों की प्रतियों को विश्व के समक्ष लाने का प्रयास सतत किया जा रहा है वस्तुतः आधुनिक विश्व में संस्कृत को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ताल से ताल मिल कर काम करने के लिये वैज्ञानिक संसाधनों एवं तकनीकों का भी समावेश विभिन्न्न उपकरणों तथा अन्तर्जाल के सहयोग से सम्पादित किया जा रहा है
भारतीय विश्वविद्यालयादि विभिन्न संस्थानों में संस्कृत भाषा अध्ययन-अध्यापनादि कार्य के अलावा विश्व के अनेक देशों में भी इस भाषा की गरिमा को आत्मसात् करते हुए वहाँ के प्रमुख विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन आदि कार्य चल रहे हैं ।
प्रस्तुत लेख में क्रमानुसार कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों में हो रहे संस्कृत भाषा अध्ययन , वहाँ प्रदान की जाने वाली उपाधियों तथा उन विश्वविद्यालयों में अध्यापन तथा अनुसंधान कार्यों में संलग्न संस्कृत विद्वानों के नाम एवं यन्त्रात्मक आधुनिक युग में संस्कृत की प्रासंगिकता को नवीन प्रविधियों का प्रयोग करते हुए हो रहे विशिष्ट प्रकार्यों का सामान्य परिचय प्रदान किया जा रहा है :-
                हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के द दिपार्टमेन्ट ऑफ संस्कृत एण्ड इण्डियन स्टडीज नाम के विभाग में संस्कृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन पूर्व स्नातक , स्नातक , स्नातकोत्तर कक्षाओं में विभाजित कर होता है । कक्षानुसार निर्धारित पठन सामग्रियों को निम्नलिखित वर्गीकरण से समझा जा सकता है -
1.       पूर्व स्नातक स्तर पर संस्कृत की आधारभूत संकल्पनाओं तथा संरचनाओं के बारे में ज्ञान प्रदान किया जाता है ।
2.       स्नातक स्तर के विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत व्याकरण , हिन्दू-बौद्ध धर्म-दर्शनों , उपनिषद , ब्रह्म-सूत्र , रामायण , महाभारत , काव्यशास्त्र , इतिहास आदि का अध्ययन किया जाता है ।
3.       स्नातकोत्तर स्तर तथा अनुसंधान कार्यों में भाग ले रहे छात्र अनेक काव्यशास्त्रों एवं अन्य गम्भीर शास्त्रों का अध्ययन और अनुसंधान कार्य विभिन्न परामर्शदाताओं के कुशल निर्देशन में करते हैं ।
A.M. , Ph.D आदि उपाधियाँ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग द्वारा प्रदान की जाती हैं ।
इस यूनिवर्सिटी के द डिपार्टमेन्ट ऑफ संस्कृत एण्ड इण्डियन स्टडीज में अध्यापन कार्य में संलग्न विद्वानों में - गॉय कैन्डेल , फ़्रन्सिस एस्. क्लूनी , अन्ने ई मोन्यस , परिमल जी पाटिल , अली एस्. असानी , माइकल विजल आदि संस्कृत अध्यापक प्रमुख हैं ।
                           अनुसंधानादि विभिन्न प्रकार्यों के अलावा फ़्रान्सिस क्लूनी , अन्ने मोन्यस एवं परिमल जी पाटिल जैसे संस्कृत विद्वानों द्वारा क्रमशः लिखित The Truth The Way The Life , Singing in the lives of shiva’s saints , Buddhist philosophy of language in India नामक पुस्तकें संस्कृत भाषा से सम्बन्धित साहित्य-निधि को नए आयाम दे रही हैं ।
                  यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेनिसिलवानिया के साउथ एशिया स्टडीज विभाग में संस्कृत का अध्ययन प्रचलित है । संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थित इस विश्वविद्यालय में स्नातक पूर्व , स्नातक , स्नातकोत्तर तथा Ph.D स्तर के अध्ययन अनुसंधानादि कार्यों के अलावा इन स्तरों की उपाधियाँ भी प्रदान की जाती हैं । स्नातक पूर्व के छात्रों को भाषा प्रयोग में स्तरीय दक्षता प्राप्त करने पर भाषा प्रमाणपत्र दिए जाते हैं । अध्ययन सामग्रियों में संस्कृत की आधारभूत संरचना के ज्ञान के साथ-साथ रामायण , महाभारत , मनुस्मृति का अध्यापन कार्य होता है । छात्र अपनी विशेष रुचि के अनुसार शास्त्रीय संस्कृत-साहित्य तथा महाकाव्यों का अध्ययन डा0 रामकरण शर्मा के कुशल मार्गनिर्देशन में कर सकते हैं ।
                 यहाँ अध्यापन कार्य में लगे विद्वद्वर्ग में डा0 डेवेन पटेल तथा डा0 रामकरण शर्मा के नाम उल्लेखनीय हैं ।
            इस विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में हो रहे अध्यापन और अनुसंधान कार्यों के अलावा       प्रकार्यात्मक गतिविधियों में डा0 डेवेन पटेल द्वारा लिखित The Brahma vichar Tradition of Meditation in Patanjali’s Yogasutra and Buddhghosa’s Veshiddhimagga जैसी पुस्तकों के प्रणयन द्वारा संस्कृत की महिमा को विश्व के समक्ष लाने के प्रयास किए जा रहे हैं ।
              एमरॉय यूनिवर्सिटी के भाषा-केन्द्र में संस्कृत की प्राचीनता तथा महत्ता को विशिष्ट मानते हुए संस्कृत अकादमी द्वारा इस भाषा का अध्ययन-अध्यापन कार्य चलाया जाता है ।
          यहाँ अध्यापन कार्य में लगे विद्वानों में डा0 सरस्वती मोहन का नाम अग्रगण्य है ।
अध्ययन प्रक्रिया  तथा विभिन्न उपाधियों को प्रदान करने की प्रक्रिया को इस तरीके से समझा जा सकता है –डा0 सरस्वती मोहन के मार्गनिर्देशन में संस्कृत के अध्ययन को सात स्तरों में विभाजित कर पढ़ाया जाता है ।
1.       पहले स्तर में भाषिक तत्वों का ज्ञान प्रदान कर संस्कृत भाषा को शुद्ध तरीके से पढ़ने लिखने में दक्षता प्राप्त करने के लिए अध्यापन द्वारा प्रेरित किया जाता है । इस स्तर पर दूरस्थ शिक्षा भी विश्वविद्यालय प्रशासन मुहैया कराती है ।
2.       इस स्तर पर संस्कृत भाषा की महत्त्वपूर्ण एवं आधारभूत अवधारणाओं यथा- संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण , कारक , लिङ्गविचार आदि व्याकरण सम्बद्ध पाठ पढ़ाए जाते है । इस द्वितीय स्तर में कम से कम 750 संस्कृत वाक्यों के निर्माण में छात्रों को पटु बनाने का प्रयास किया जाता है । यह स्तर भी दूरस्थ शिक्षा का एक अङ्ग है ।
3.       तृतीय स्तर पर रोचक कथाओं तथा स्मरणीय श्लोकों का समावेश किया जाता है । यहाँ सन्धि , समास आदि पाठों पर छात्रों का ध्यान केन्द्रित किया जाता है । मुख्य रूप से 15 अभ्यास कार्यों द्वारा छात्रों की समस्यात्मक परिस्थितियों को सरलीकृत करने का प्रयास किया जाता है । सन्धि अभ्यास कार्य गीता से चयनित किए जाते हैं । दूरस्थ शिक्षा इस स्तर पर भी उपलब्ध है ।
4.       चौथे स्तर में बृहत् कथाओं तथा सुभाषितों के माध्यम से सन्धि में निष्णात करने का प्रयास , अध्यापन द्वारा किया जाता है ।
5.       मूल रामायण के अंशों को स्वीकृत कर अध्यापन कार्य द्वारा संस्कृत भाषा की पवित्रता और गरिमा को स्पष्ट किया जाता है , साथ ही संस्कृत साहित्य के अध्ययन द्वारा छात्रों में अनुवाद करने की क्षमता का विकास किया जाता है ।
6.       क्लिष्ट गद्यात्मक अंशों को पठनार्थ जोड़कर मुख्यतः समासादि प्रयोगों को सरलीकृत किया जाता है ।
7.       सातवें स्तर पर संस्कृत साहित्य के अध्ययन कार्य को जोड़कर विभिन्न श्लोकों तथा सुभाषितों की मदद से छन्द ज्ञान कराया जाता है , इस स्तर पर छात्रों में सरल श्लोक रचना निर्माण के प्रति भी रुचि उत्पन्न की जाती है ।
                प्रकार्यात्मक गतिविधियों में , अध्यापन कार्य में संलग्न डा0 सरस्वती मोहन , जिन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय में संस्कृत विषय का गम्भीर अध्ययन किया । अपना अनुसन्धान कार्य इन्होंने ’ अप्रकाशित संस्कृत साहित्य की पाण्डुलिपियाँ ’ इस विषय पर किया , तीन दशकों का सुदीर्घ तथा रुचिकर अध्यापन कार्य द्वारा संस्कृत को अमेरिका में प्रसारित करने में अत्यन्त सहयोग प्रदान कर रही हैं ।
            जापान के क्योटो यूनिवर्सिटी में संस्कृत लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर इस विभाग द्वारा संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन सम्पादित किया जाता है ।
          इस विभाग में स्नातक स्तर एवं स्नातकोत्तर स्तर की उपाधियाँ प्रदान की जाती हैं ; शास्त्रीय संस्कृत , वेद , दर्शन आदि विषयों पर अनुसन्धान कार्य की भी सुविधा उपलब्ध है ।
            क्योटो यूनिवर्सिटी के इस विभाग में अध्यापन रत विद्वद्मण्डली में प्रो. टोकून्गा मुनियो , एसोशिएट प्रो. योकोचि यूको , प्रो. ईकारी यासुकि , वार्नेर क्नोबल , फ़ूजित मसातो , यागी तोरो , होन्जो योशिफ़ोमी , मिजोकामी टोमियो , कानो क्यो के नाम उल्लेखनीय हैं ।
                  प्रकार्यात्मक कार्यों में विद्वानों द्वारा लिखित अनेक संस्कृत ग्रन्थों के नाम गिनाए जा सकते हैं । जिनमें प्रो. टोकून्गा ; जो इस केन्द्र के अध्यक्ष हैं , बृहद्देवता नामक आलोचनात्मक ग्रन्थ को संस्कृत में लिखा है ,यह पुराणों तथा ऋग्वैदिक परम्पराओं पर आधारित है । एसोशिएटेड प्रो. योकोचि तथा क्नोवल क्रमशः पुराण और संस्कृत साहित्य एवं वैदिक भाषा साहित्य पर गवेषणात्मक कार्य कर संस्कृत भाषा को सम्पोषित करने का प्रयास जापान में कर रहे हैं ।
      समग्र रूप में , प्राच्य विभाग , भारतीय दर्शन , बौद्ध-अध्ययन आदि विभागों के परस्पर सहयोग से संस्कृत भाषा और साहित्य नामक यह विभाग जापान में भी संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन कार्य संचालित कर रहा है ।
       इन प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के अलावा विदेशों में मौजूद कई शिक्षण-संस्थानों में भी संस्कृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन कार्य संचालित होता है , इन्हीं शिक्षण-संस्थानों में से कुछ संस्थानों का परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है –
  American Sanskrit Institution  जिसकी संस्थापना व्यास हाउस्टन द्वारा 1989 ई. में हुई । जो ब्रिल , क्रिस बुहनर , जैन एनफ़ील्ड , जोश मिशेल , कैथेरिन पेन , सीन्थिया सोन्डग्रास के सहयोग से संस्कृत भाषा का अध्यापन कार्य इस संस्थान द्वारा सम्पादित किया जाता है । विशिष्ट प्रकार्यात्मक गतिविधियों में Sanskrit By CD इस उपागम की सहायता से संस्कृत सिखाई जाती है । यह 12 अध्यायों में विभाजित है । इसकी मुख्य विशेषताओं में 16 CD’s से सुसज्जित अध्ययन सामग्री , 275 पृष्ठ बड़े अक्षरों में इसकी उपलब्धता , अध्ययन को आनन्दप्रद बनाती हैं ।
22 पूर्ण पृष्ठ उच्चारण सम्बन्धी सभी संस्कृत मानकों का अनुप्रयोग किया गया है ।
सार रूप में लिखित दस्तावेजों की मदद से संस्कृत अधिगम बेहद सरल हो जाता है ।
          Sanskrit Atlas , जिसे ASI के संस्थापक व्यास हाउस्टन ने ही निर्मित किया है , की सहायता से 43 बृहत् रंगीन पृष्ठों में 6 वृत्तों के साथ तथा 33 विशिष्ट रंगों की सहायता से संस्कृत व्याकरण के आधारभूत सन्धि , समास आदि को सरलता से सीखा जा सकता है ।
                         आर्ष बोध केन्द्र – आर्ष बोध को समर्पित यह संस्कृत केन्द्र स्वामी तदात्मानन्द द्वारा न्यू जर्सी , समरसेट , इंग्लैण्ड में 2000 ई. में स्थापित किया गया । यहाँ पारम्परिक संस्कृत शास्त्रों जैसे भगवद्गीता , वेदान्त , वैदिक मन्त्रों का अध्यापन होता है तथा ध्यान ,योग एवं अन्य आध्यात्मिक अभ्यास का शिक्षण होता है । दैनन्दिनी के अनुसार योग-सूत्र , पद्मपुराण , महाभारत , संस्कृत व्याकरण , तैतिरीयोपनिषद और हिन्दू-धर्म का भी क्रमानुसार पठन-पाठन होता है ।
       अध्यापक-वर्ग में स्वामी तदात्मानन्द के नेतृत्व में संस्कृत के प्रचार-प्रसारार्थ अनेक विद्वान आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए इस भाषा के उन्नयन के प्रति कृतसंकल्प हैं ।स्वामी तदात्मानन्द , जिन्होंने ऋषिकेश में अध्ययन किया , संगणक अभियन्ता तथा उच्च कोटि के संस्कृत विद्वान हैं । न्यू जर्सी , इंग्लैण्ड के लोगों में संस्कृत एवं आध्यात्मिकता की वृद्धि में अमूल्य योगदान दे रहे हैं ।
                   विशिष्ट प्रकार्यों में , अन्तर्जाल की सहायता से केनोपनिषदादि अनेक ग्रन्थों की गूढ़ व्याख्याओं , भक्ति एवं कर्म , आत्मशुद्धि आदि कुछ विशेष ग्रन्थों को विश्व के समक्ष लाना ; पुरुष-सूक्त , नारायण , रवीन्द्रनाथ टैगोर के गीतों का CDs में संग्रहण , प्रमुख हैं ।
          आर्ष विद्या गुरुकुलम् – 1986 ई. में स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा संस्थापित संस्कृत अध्ययन संस्थान के रूप में पेनेसिलवानिया ( अमेरिका ) के सेलोसबर्ग में 14 एकड़ के क्षेत्रफल में अवस्थित है । आयुर्वेद , ज्योतिषशास्त्र , वेदान्त आदि का शिक्षण कार्य चलता है । विशेष तौर पर संस्कृत की कक्षा अन्तर्जाल की सहायता से जीवन्त रूप से चलाई जाती है ।
           इस संस्थान में अध्यापन रत विद्वानों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-
1.   गुरुकुलम् के शिक्षक – श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती , स्वामी विद्यात्मानन्द , तत्त्वविदानन्द , रामानन्द , श्रीमती समता शुद्धात्मा , लांस डेनियल्स , पं0 मुकेश देसाई आदि ।
2.   संयुक्त राज्य अमेरिक तथा कनाडा के शिक्षक – श्री धीर चैतन्य , श्री स्वामी तदात्मानन्द , श्री स्वामिनी मयातीतानन्द ।
3.   विश्व में गम्यमान शिक्षक – स्वामी वागीशानन्द , गम्भीर चैतन्य , ग्लोरिया अराइरा , श्री वासुदेवाचार्य ।
4.   अर्जेन्टीना तथा भारत आदि देशों में शिक्षक – स्वामिनी विलासानन्द , स्वामिनी संविदानन्द सरस्वती , एन्टोनियो पेरोन , अद्वयानन्द सरस्वती , आत्मलीनानन्द सरस्वती , ऐश्वर्यानन्द , भूमविद्यानन्द , आत्मविदानन्द सरस्वती आदि ।
          प्रकार्यात्मक गतिविधियों में आदित्यहृदयम् , बालबोधिनी जैसी अध्ययनपरक CDs एवं देवनागरी लिपि जैसे भाषिक तत्वों को उपागमों पर आधारित संस्कृत शिक्षण में अनुप्रयुक्त कर वैज्ञानिकता के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
                इन विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों के अतिरिक्त संस्कृत भाषा का अध्ययन वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया के नेशनल यूनिवर्सिटी , लाट्रोब यूनिवर्सिटी तथा यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिडनी ; ऑस्ट्रिया के वियना यूनिवर्सिटी, बेल्जियम के जेन्ट तथा ल्यूवेन यूनिवर्सिटी ; डेनमार्क के यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपनहेगन ; फ़िनलैण्ड के हेल्सिन्की इन्स्टीच्यूट फ़ॉर एशियन एण्ड अफ़्रीकन स्ट्डीज ; जर्मनी के बर्लिन , बोन , हैम्बर्ग , फ़्राइबर्ग , लीपजिग तथा मारबर्ग यूनिवर्सिटीज ; ग्रेट ब्रिटेन के कैम्ब्रिज , एडिनबर्ग , लण्डन , ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटीज ; इटली के यूनिवर्सिटी ऑफ़ रोम ; नॉर्वे के ऑस्लो यूनिवर्सिटी : रूस के मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी ; स्वीडन के स्टॉकहोम ; स्विट्जरलैण्ड के ज्यूरिख यूनिवर्सिटी ; उत्तरी अमेरिका के इण्डियाना और जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी , यूनिवर्सिटी ऑफ़ टैक्सास एट ऑस्टिन ,यूनिवर्सिटी ऑफ़ वर्जीनिया , यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरण्टो जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों में भी वर्तमान समय में संस्कृत की महत्ता को अङ्गीकृत करते हुए विभिन्न विभागों में संस्कृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन तथा अनुसन्धान कार्य चलायमान हैं ।
          निष्कर्ष :- समग्र रूप में , विश्व में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं के मध्य संस्कृत भाषा के अत्यन्त समृद्धिपूर्ण साहित्यिकनिधि तथा सभ्यता एवं सांस्कृतिकता से जुड़ी गौरवमयी ऐतिहासिकता को शताब्दियों से सहेजकर रखने वाली अद्वितीय क्षमता और इस भाषा की अन्य विशेषताओं को हरेक दृष्टिकोण की सहायता से पूर्णतः समझने के बाद समकालीन युग में , न केवल इस भाषा के विकास-स्थल भारत में ही अपितु विश्व के विभिन्न राष्ट्रों द्वारा इस भाषा की महत्ता को स्वीकार करते हुए विभिन्न भाषा-वैज्ञानिक तथा अन्य विशिष्ट उपकरणों एवं तकनीकों का प्रयोग करते हुए भाषा को नवीनीकृत तथा प्रासंगिक कलेवर में प्रस्तुत किया जा रहा है । भारत तथा विश्व में स्थित विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं शिक्षण-संस्थानों द्वारा आधुनिक विश्व के परिदृश्य में भी संस्कृत भाषा के समुचित रूप से वर्धनार्थ संस्कृत शब्दकोश , उपनिषद , रामायण , महाभारत , अन्य अनेक प्राचीन ग्रन्थ , शास्त्र एवं संस्कृत साहित्य की विशाल निधियाँ अन्तर्जाल तथा विविध आधुनिक उपकरणों की सहायता से विश्व के समक्ष उद्घाटित की जा रही हैं , ये सभी प्रकार्य आज के दौर में विविध स्थानों में प्रचलित संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन की ओर विश्व की बढ़ती हुई रुचि को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं ।




अन्तर्जाल सम्बद्ध सन्दर्भ :-

रिक ब्रिग्स के कथित अंश http://www.speaksanskrit.org/forum/viewtopic.php?t=115 As on 22.02.2011
भारत में संस्कृत विश्वविद्यालय http://www.sanskrit.nic.in/sans.htm As on 21.02.2011
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में संस्कृत विभाग http://www.fas.harvard.edu/~sanskrit/pubs.html As on 22.02.2011
एमरॉय यूनिवर्सिटी में संस्कृत विभाग https://cet.emory.edu/eclc/sanskrit.cfm As on 22.02.2011
क्योटो विश्वविद्यालय में संस्कृत http://www.bun.kyoto-u.ac.jp/sanskrit/  (1 Aug , 2003) As on 22.02.2011
अमेरिकी शिक्षण संस्थान में संस्कृत http://www.Americansanskrit.com/learn/sbcd.php As on 20.02.2011
इंग्लैण्ड में संस्कृत अध्ययन http://www.arshabodha.org As on 20.02.2011
अमेरिका में संस्कृत http://www.arshavidya.org/programs.html As on20.02.2011
विश्व में संस्कृत अध्ययन केन्द्र http://www.montclair.edu/RISA/d-studies.html As on 23.02.2011
संस्कृत जगत् में हो रहे कार्य http://sanskritdocuments.org/projects_list1.html As on 23.02.2011

4 comments:

  1. sanskrit ke vishey me ek anokhi jankari ke liye dhanyavad

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  2. Vivek ji mai upakrut hua ki di gayi jaankaari aapko anokhi lagi

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  3. ज्ञानप्रद लेख है संस्कृत की प्रासंगिकता को लेकर।।

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  4. सुदृढ़ लेखन। धन्यवाद

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